पटना (एसएनबी)। मगही के कवि योगेश की 80वीं जयंती के मौके पर प्रदेश भर से जुटे साहित्यकारों ने राजधानी में उनकी प्रतिमा लगाने की मांग की। बुधवार को बिहार मगही अकादमी की ओर से बोरिंग रोड स्थित अभियंता भवन में इस कार्यक्रम में सांसद एवं जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने भरोसा दिलाया कि मगही को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का पूरा प्रयास किया जायेगा। समारोह के विशिष्ट अतिथि ग्रामीण कार्य विभाग व पंचायती राज विभाग के मंत्री डॉ. भीम सिंह ने कहा कि मगही को सही सम्मान दिलाना ही कवि योगेश के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मगही अकादमी के अध्यक्ष उदयशंकर शर्मा ने सरकार से साहित्यकारों के लिए फ्री यात्रा सुविधा देने और पेंशन योजना की मांग की।
कार्यक्रम की शुरूआत वशिष्ठ नारायण सिंह ने की। एमएलसी उपेन्द्र प्रसाद ने साहित्यकारों को हरसम्भव सहयोग का भरोसा दिलाया। कला, संस्कृति एवं युवा कार्य विभाग के सहयोग से हो रहे इस कार्यक्रम में मगही अकादमी की ओर से कवि योगेश की स्मृति में विशेष डायरी जारी की गयी। पहले सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार मधुकर, गीतकार रामाश्रय झा, मगही अकादमी के पूर्व अध्यक्ष राम प्रसाद सिंह, उदय भारती आदि ने अपने विचार रखे।
इसके बाद मगही अकादमी की ओर से वरिष्ठ कवियों को कवि योगेश शिखर सम्मान प्रदान किया गया। अकादमी अध्यक्ष उदयशंकर शर्मा ने इस परम्परा को हर वर्ष बनाये रखने की घोषणा की। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में मगध क्षेत्र के विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये जिसमें कठपुतली नाच एवं झूमर प्रमुख थे। महाकवि योगेश फाउंडेशन के सचिव अनिल सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया जबकि कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के व्याख्याता डॉ. केके नारायण ने किया।
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Friday, October 25, 2013
साहित्यकारों की मांग, पटना में लगे कवि योगेश की प्रतिमा
Saturday, November 5, 2011
मगही दिवस के रूप में मनी कवियोगेश की जयंती
बिहार के बड़े जनकवि योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश को उनकी जयंती पर मगही दिवस के रूप में मनाकर याद किया गया। मगही के लिए कई तरीके से ये दिन ऐतिहासिक साबित हुआ। पहली बार मगही के साथ राजनीतिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक ताकतें एक साथ एक मंच पर दिखीं। कार्यक्रम मगही के पहले महाकाव्य गौतम के रचयिता महाकवि योगेश के गांव पटना जिले के नीरपुर में हुआ। इसमें कवि योगेश की स्मृति में रंगीन कैलेंडर जारी हुआ, एक पुस्तकालय का शिलान्यास हुआ और एक मगही पत्रिका बंगमागधी का लोकार्पण किया। साथ ही मगही अकादमी के अध्यक्ष उदयशंकर शर्मा के नेतृत्व में जय मगही स्वाभिमान यात्रा का आगाज किया गया। मंच पर बिहार के सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह, गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ, बाढ़ के विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू, पूर्व सांसद एवं मंत्री विजयकृष्ण, स्वामी हरिनारयणानंद उपस्थित थे। भोजपुरी सुपरस्टार मनोज तिवारी मंच पर सांस्कृतिक खेमें का नेतृत्व कर रहे थे तो मगही अकादमी के अध्यक्ष उदयशंकर ने मगही साहित्यकारों का। वहां जुटी भारी भीड़ ने हाथ उठाकर, वक्ताओं से सीधा संवाद कर लोकभाषाओं के प्रति अपने जुड़ाव को खुलकर जाहिर किया।
सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह ने मगही में ही संबोधित करते हुए कहा कि मगही मगध की धरोहर है और इसे आठवीं अनुसूची में पहुंचाना ही योगेश जी जैसे रचनाकार की श्रद्धांजलि होगी। गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मगही हिंदी का प्राण है। महाकवि योगेश ने इसे नई उंचाई प्रदान की। उदयशंकर शर्मा ने योगेश जी को अपना दत्तक पिता बताते हुए जनसमूह से मगही में ही न्योता और पत्र व्यवहार करने का शपथ दिलाया। भोजपुरी सुपरस्टार मनोज तिवारी ने लोगों से वादा किया कि वह मगही में एक एलबम जरूर निकालेंगे। मनोज ने महाकाव्य गौतम के काव्य अंश का पाठ कर लोगों की वाहवाही लूटी। कार्यक्रम संचालन साधुशरण सिंह सुमन ने किया। शुरूआत में मगही साहित्यकारों डा रामाश्रय झा, धनंजय श्रोत्रिय, ओंकार निराला, राजकुमार प्रेमी, भाई परमेश्वरी, ब्रजनंदन जी आदि ने अपने विचार रखे और कविताओं का पाठ किया। फिर भोजपुरी क्लासिकल सिंगर राकेश उपाध्याय ने अपने भजनों से लोगों की तालियां बटोरी। महाकवि योगेश फाउंडेशन के सचिव अनिल कुमार ने अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंट कर कार्यक्रम का समापन किया।
Tuesday, October 18, 2011
मगही दिवस पर जारी होगा कवि का कैलेंडर
कागज के समंदर में कलम की नाव लेकर के। निकला हूं शहर की भीड़ में मैं गांव लेकर के।।
इन पंक्तियों को जीनेवाले बिहार के प्रतिष्ठित कवि योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश की जयंती उनके गांव पटना जिले के नीरपुर में २३ अक्तूबर को मगही दिवस के रूप में जोरदार तरीके से मनाने की तैयारी है। विभिन्न वादों के दौर में अपनी जड़ों से जुड़े रहनेवाले इस जनकवि को स्मरण, नमन करते रहने के लिए कैलेंडर का सहारा लिया जा रहा है। मगही दिवस पर उनके नाम पर एक पुस्तकालय और लोकभाषा संरक्षण केंद्र का शिलान्यास होगा, साथ ही उनकी तसवीर और जीवन चरित का एक कैलेंडर भी जारी किया जाएगा। यह संभवतः पहली बार होगा जब किसी आधुनिक लोकभाषा कवि का कैलेंडर जारी होगा। मगही के प्रथम महाकाव्य गौतम के रचयिता को सैंकड़ों घरों तक पहुंचाने के इस प्रयास को साहित्यकार काफी सकारात्मक रूप में देख रहे हैं।
मगही आंदोलन को बल देने के लिए इस कार्यक्रम में बिहार सरकार के प्रभावशाली स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे, सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह और मगही अकादमी के अध्यक्ष उदयशंकर शर्मा मौजूद रहेंगे। यह मंच सिर्फ मगही का नहीं होगा। इस पर पूर्वांचल के सांसद, विधायकों के साथ भोजपुरी सुपरस्टार मनोज तिवारी और भोजपुरी क्लासिकल सिंगर राकेश उपाध्याय भी मौजूद होंगे। क्योंकि योगेश सिर्फ हिंदी और मगही के कवि नहीं थे, बल्कि सभी लोकभाषाओं के आंदोलनों में सहभागी थे। उनकी शुरूआत हिंदी से हुई थी और १९५२ में आचार्य शिवपूजन सहाय की प्रेरणा से रहस्यवादी हिंदी कविताओं का संग्रह विभा सामने आई थी। पर जन और जमीन से जुड़ाव ने उन्हें १९५४-५५ से मगही की ओर मोड़ दिया। हिंदी में लगातार लेखन करते रहे पर बड़ी स्वीकार्यता उन्हें मगही के महाकवि के रूप में ही मिली थी। उनके करीबी साहित्यकारों का आरोप है कि बिहार के खेमेवादी हिंदी कवि जानबूझकर उन्हें मगही कवि घोषित करते थे।
Saturday, August 14, 2010
मगही दिवस के रूप मे मनेगी योगेश की जयंती
बाढ़ । मगही कवि स्व। योगेश्वर सिंह योगेश की पुण्यतिथि समारोह के मौके पर बीती रात नीरपुर गांव मे अखिल भारतीय मगही-कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन की अध्यक्षता साहित्यकार मगही अकादमी के अध्यक्ष उदय शंकर ने की जबकि संचालन मगही के चर्चित कवि रामाश्रय झा ने किया। सम्मेलन मे बिहार व यूपी की विभिन्न जगहो से आये साहित्य- काव्य के कई दिग्गज पुरोधा शामिल हुए। कवियो की व्यंगात्मक व समाजिक कुरितियो पर प्रहार करती काव्य रस की सुर सरिता मे श्रोतागण देर रात तक झूमते रहे। हिसुआ से आये चर्चित कवि दीनबंधु, कवि कारू गोप, जयराम जी, व गोपालगंज के पंकज जी समेत अन्य साहित्यकारो ने सामाजिक अव्यवस्था पर चोट करती कविता पाठकर लोगो को मंत्र मुग्ध कर दिया। इस मौके पर कवि योगेश फाउंडेशन के द्वारा मगही मंडल के अध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार डा। रामनंदन जी को 2010 का योगेश शिखर सम्मान प्रदान किया गया। एक साथ जुटे मगही साहित्य के दिग्गजो ने इस मौके पर घोषणा किया कि कवि स्व। योगेश की जयंती 23 अक्टूबर को मगही दिवस के रूप मे मनाया जायेगा। समापन समारोह को संबोधित करते हुए मृत्युंजय कुमार ने कहा कि कवि योगेश जी और अन्य कवियों की 1950 के दशक की दुर्लभ पांडुलिपियां मगही मंडल व बिहार सरकार को सौप देंगे ताकि मगही साहित्य का प्रचार प्रसार व्यापक रूप से हो सके।
Saturday, August 7, 2010
मगही के प्रथम महाकाव्य गौतम और मगही रामायण का लोकार्पण १२ अगस्त को
मगही के प्रथम महाकाव्य गौतम और मगही रामायण का लोकार्पण १२ अगस्त को महाकवि योगेश के गाँव पटना के नीरपुर में उनकी पहली पुण्यतिथि के अवसर पर होगा। बिहार के वरिष्ठ मंत्री नंदकिशोर यादव, नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के वीसी जीतेन्द्र कुमार सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार रामदेव शुक्ल, डॉ अनिल राय, प्रो प्रमोद कुमार सिंह आदि इस अवसर पर मौजूद रहेंगे। लोकार्पण के बाद अखिल भारतीय मगही भासा सम्मलेन का अधिवेशन और कवि सम्मलेन होगा। कार्यक्रम का आयोजन महाकवि योगेश फौन्डेशनकि ओरसे किया जा रहा है।
Monday, September 7, 2009
आंसू दे गया मगही के अंतिम सूर्य का अस्त होना
- प्रोफेसर साधु शरण सिंह सुमन(बिहार के वरिष्ठ साहित्यकार एवं भोजपुरी कवि, अणुव्रत आंदोलन से भी जुड़े। मोबाइल नंबर ०९३३४१३३७०८ पर संपर्क किया जा सकता है।)
दरअसल जन-जन के लोकप्रिय लोक कवि डा.योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश ने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत का विद्वान होने के बावजूद लोकभाषा मगही को साहित्य सेवा का जरिया बनाया। यही अपने आप में लोक के प्रति उनकी सेवा भावना को दर्शाता है। कवि, साहित्यकार और मानस विशेषज्ञ योगेश जी ने शिक्षा अधिकारी के पद से सेवा निवृत्ति के बाद खुद को लोक साहित्य और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना और कई पत्रिकाओं का संपादन कर उन्होंने साबित किया कि वह अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। मगही में जहां उन्होंने महाकाव्य गौतम की रचना की, वहीं मगही रामायण और गीता भी लिख डाली। योगेश लोकभाषा मगही के आखिरी सूर्य थे। इससे पहले मगही के तीन सूर्य लखीसराय के डा. श्रीनंदन शा ी, बड़हिया के मथुरा प्रसाद नवीन और नालंदा के जयराम सिंह जयराम गुजर चुके थे। ऐसे में योगेश जी के रूप में आखिरी सूर्य के अस्त होने की सूचना आंसू दे गया।बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के आजीवन सदस्य और पटना जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष योगेश जी मगही भाषा को बिहार लोक सेवा आयोग की प्रतियोगिता परीक्षाओंं में शामिल कराने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे। इस उद्देश्य से उन्होंने कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व किया और राज्य सरकार से लगातार इसकी मांग करते रहे। योगेश जी ने मगही के उत्थान के लिए संपूर्ण मगध क्षेत्र में आधे दर्जन से अधिक संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर नि:स्वार्थ और स्वांत: सुखाय भाव से मगही का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने अपने आखिरी समय तक युवा कवियों का मार्गदर्शन किया। योगेश जी के निधन पर बाढ़ के साहित्यप्रेमियों की ओर से शोक सभा का आयोजन हुआ। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अत्यंत आनन-फानन में आयोजित इस शोकसभा में सैकड़ों लोग उमड़ पड़े। सभा में फैसला लिया गया कि डा.योगेश जी के नाम पर हर वर्ष एक लोक साहित्यकार को योगेश स्मृति सम्मान प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा मगही के युवा रचनाकार योगेश जी के जाने से खुद को अकेला न समझें, इसी सोच के साथ डा.योगेश स्मृति संस्थान स्थापित करने का फैसला लिया गया। इस संस्था की ओर से नवोदित लोक कवियों, रचनाकारों की मदद की जाएगी।न केवल साहित्यकारों, बल्कि समाज के निचले तबके के लोगों की मदद के लिए भी योगेश जी हमेशा तैयार रहते थे। बाढ़ में ही एक बार साक्षरता अभियान के एक कार्यक्रम में मैं और योगेश जी साथ पहुंचे थे। वहां बच्चों को बड़ी संख्या में कलम और पेंसिलें बांटी जा रही थीं। योगेश जी ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें एक सौ कलमें दिलवा दूं। मुझे उनकी इस मांग पर बड़ा आश्चर्य हुआ, फिर भी मैंने आयोजकों से कह कर योगेश जी को सौ कलमें दिलवा दी। अगले ही दिन मुझे यह जानकर और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि योगेश जी सुबह सवेरे उठकर पास की दलित बस्ती में गए और बच्चों को कलमें बांट कर पढऩे के लिए प्रेरित किया।मानस मर्मग्य योगेश जी रामचरित मानस के एक अच्छे प्रवचनकर्ता भी थे। इसके लिए मध्य प्रदेश में उन्हें मानस हंस का सम्मान दिया गया था। उनके मन में सभी धर्मों के लिए आदर का भाव था। करीब चार साल पहले का एक वाकया याद आता है। मैं योगेश जी के साथ राजस्थान के पाली जिले में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए आयोजित एक साहित्यिक सम्मेलन में पहुंचा था। हिंदी और उर्दू के कवि अपनी डफली आपना राग अलाप रहे थे। बारी जब डा.योगेश की आई तो उन्होंने अत्यंत सरल भाषा में समझाया कि जो 'ऊंÓ है, वही इश्वर है, वही अल्लाह है। सभी का मूल भाव एक है। उनकी लोकप्रिय शैली से गदगद हुए वहां मौजूद प्रबुद्ध श्रोता पूछने लगे, यह कहां के कवि हैं? पता चला बिहार तो कइयों की टिप्पणी थी, ऐसी विभूति बिहार ही पैदा कर सकता है।सादगी के प्रतिमूर्ति योगेश जी बड़ी-बड़ी और कड़ी-कड़ी मूंछें रखते थे। उनकी 'मूंछ महातमÓ कविता इतनी लोकप्रिय है कि जो एक बार सुन लेता था उसके मानस में योगेश जी मूंछ वाले कवि के रूप में बस जाते थे। वह कई बार मेरे घर आ चुके थे। एक दिन उन्होंने मेरी पत्नी से कहा, सुमन जी से भी कहो कि मूंछ रखे। इसके साथ ही उन्होंने वह कविता मेरी पत्नी को भी सुना दी-तू बात मूंछ के नय पूछ, एकरा में बड़ा बखेरा हे।जे हमरा दन्ने ताक हे, समझे बड़ा लखेरा हे॥मूंछ मरद के चिन्हा हे, दुस्मन खातिर छरबिन्हा हे।मूंछ रहल त भारत जीतल, मूंछ कटल तब हारऽ ह।कि हम्मर मूंछ निहारऽ हअ।
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मगध की मिट्टी में जन्मे मानस मर्मग्य डा.योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश ने मगध को महिमा मंडित किया। मगही भाषा को अग्रणी लोकभाषा बनाने के लिए योगेश जी द्वारा चलाए गए अभियान को मगध क्षेत्र कभी भुला नहीं सकता। ७८ साल की आयु में भी वे साहित्य सेवा के लिए मूंछ पर ताव देकर खड़े रहते थे। गंगा की पावन धरती पर जन्मे योगेश जी में जहां सादगी कूट-कूट कर भरी हुई थी, वहीं साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं को सहयोग देने के लिए वह दिन-रात उपलब्ध रहते थे। क्षेत्र के दर्जनों युवा कवियों और रचनाकारों के योगेश जी प्रेरणा ोत हैं और बने रहेंगे। समाजसेवी योगेश जी साक्षरता अभियान, नशा मुक्ति अभियान जैसे कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे। खुद नशा से दूर रहने वाले योगेश जी ने दर्जनों सम्मान प्राप्त करने के बावजूद किसान की वेषभूषा नहीं त्यागी। इंजोर में एक कवि ने उनका काव्य चित्र खींचा था-सांवर रंग झोलंगा कुरता, सिर पर छोटगर टीक। फरसा अइसन मोछ टेंढ़ हे, बोले मेंं निर्भीक॥ उनका यही रूप उन्हें सर्वश्रेष्ठï जनकवि बनाता है।- पंडित सत्यनारायण चतुर्वेदी।
दरअसल जन-जन के लोकप्रिय लोक कवि डा.योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश ने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत का विद्वान होने के बावजूद लोकभाषा मगही को साहित्य सेवा का जरिया बनाया। यही अपने आप में लोक के प्रति उनकी सेवा भावना को दर्शाता है। कवि, साहित्यकार और मानस विशेषज्ञ योगेश जी ने शिक्षा अधिकारी के पद से सेवा निवृत्ति के बाद खुद को लोक साहित्य और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना और कई पत्रिकाओं का संपादन कर उन्होंने साबित किया कि वह अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। मगही में जहां उन्होंने महाकाव्य गौतम की रचना की, वहीं मगही रामायण और गीता भी लिख डाली। योगेश लोकभाषा मगही के आखिरी सूर्य थे। इससे पहले मगही के तीन सूर्य लखीसराय के डा. श्रीनंदन शा ी, बड़हिया के मथुरा प्रसाद नवीन और नालंदा के जयराम सिंह जयराम गुजर चुके थे। ऐसे में योगेश जी के रूप में आखिरी सूर्य के अस्त होने की सूचना आंसू दे गया।बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के आजीवन सदस्य और पटना जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष योगेश जी मगही भाषा को बिहार लोक सेवा आयोग की प्रतियोगिता परीक्षाओंं में शामिल कराने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे। इस उद्देश्य से उन्होंने कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व किया और राज्य सरकार से लगातार इसकी मांग करते रहे। योगेश जी ने मगही के उत्थान के लिए संपूर्ण मगध क्षेत्र में आधे दर्जन से अधिक संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर नि:स्वार्थ और स्वांत: सुखाय भाव से मगही का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने अपने आखिरी समय तक युवा कवियों का मार्गदर्शन किया। योगेश जी के निधन पर बाढ़ के साहित्यप्रेमियों की ओर से शोक सभा का आयोजन हुआ। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अत्यंत आनन-फानन में आयोजित इस शोकसभा में सैकड़ों लोग उमड़ पड़े। सभा में फैसला लिया गया कि डा.योगेश जी के नाम पर हर वर्ष एक लोक साहित्यकार को योगेश स्मृति सम्मान प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा मगही के युवा रचनाकार योगेश जी के जाने से खुद को अकेला न समझें, इसी सोच के साथ डा.योगेश स्मृति संस्थान स्थापित करने का फैसला लिया गया। इस संस्था की ओर से नवोदित लोक कवियों, रचनाकारों की मदद की जाएगी।न केवल साहित्यकारों, बल्कि समाज के निचले तबके के लोगों की मदद के लिए भी योगेश जी हमेशा तैयार रहते थे। बाढ़ में ही एक बार साक्षरता अभियान के एक कार्यक्रम में मैं और योगेश जी साथ पहुंचे थे। वहां बच्चों को बड़ी संख्या में कलम और पेंसिलें बांटी जा रही थीं। योगेश जी ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें एक सौ कलमें दिलवा दूं। मुझे उनकी इस मांग पर बड़ा आश्चर्य हुआ, फिर भी मैंने आयोजकों से कह कर योगेश जी को सौ कलमें दिलवा दी। अगले ही दिन मुझे यह जानकर और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि योगेश जी सुबह सवेरे उठकर पास की दलित बस्ती में गए और बच्चों को कलमें बांट कर पढऩे के लिए प्रेरित किया।मानस मर्मग्य योगेश जी रामचरित मानस के एक अच्छे प्रवचनकर्ता भी थे। इसके लिए मध्य प्रदेश में उन्हें मानस हंस का सम्मान दिया गया था। उनके मन में सभी धर्मों के लिए आदर का भाव था। करीब चार साल पहले का एक वाकया याद आता है। मैं योगेश जी के साथ राजस्थान के पाली जिले में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए आयोजित एक साहित्यिक सम्मेलन में पहुंचा था। हिंदी और उर्दू के कवि अपनी डफली आपना राग अलाप रहे थे। बारी जब डा.योगेश की आई तो उन्होंने अत्यंत सरल भाषा में समझाया कि जो 'ऊंÓ है, वही इश्वर है, वही अल्लाह है। सभी का मूल भाव एक है। उनकी लोकप्रिय शैली से गदगद हुए वहां मौजूद प्रबुद्ध श्रोता पूछने लगे, यह कहां के कवि हैं? पता चला बिहार तो कइयों की टिप्पणी थी, ऐसी विभूति बिहार ही पैदा कर सकता है।सादगी के प्रतिमूर्ति योगेश जी बड़ी-बड़ी और कड़ी-कड़ी मूंछें रखते थे। उनकी 'मूंछ महातमÓ कविता इतनी लोकप्रिय है कि जो एक बार सुन लेता था उसके मानस में योगेश जी मूंछ वाले कवि के रूप में बस जाते थे। वह कई बार मेरे घर आ चुके थे। एक दिन उन्होंने मेरी पत्नी से कहा, सुमन जी से भी कहो कि मूंछ रखे। इसके साथ ही उन्होंने वह कविता मेरी पत्नी को भी सुना दी-तू बात मूंछ के नय पूछ, एकरा में बड़ा बखेरा हे।जे हमरा दन्ने ताक हे, समझे बड़ा लखेरा हे॥मूंछ मरद के चिन्हा हे, दुस्मन खातिर छरबिन्हा हे।मूंछ रहल त भारत जीतल, मूंछ कटल तब हारऽ ह।कि हम्मर मूंछ निहारऽ हअ।
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मगध की मिट्टी में जन्मे मानस मर्मग्य डा.योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश ने मगध को महिमा मंडित किया। मगही भाषा को अग्रणी लोकभाषा बनाने के लिए योगेश जी द्वारा चलाए गए अभियान को मगध क्षेत्र कभी भुला नहीं सकता। ७८ साल की आयु में भी वे साहित्य सेवा के लिए मूंछ पर ताव देकर खड़े रहते थे। गंगा की पावन धरती पर जन्मे योगेश जी में जहां सादगी कूट-कूट कर भरी हुई थी, वहीं साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं को सहयोग देने के लिए वह दिन-रात उपलब्ध रहते थे। क्षेत्र के दर्जनों युवा कवियों और रचनाकारों के योगेश जी प्रेरणा ोत हैं और बने रहेंगे। समाजसेवी योगेश जी साक्षरता अभियान, नशा मुक्ति अभियान जैसे कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे। खुद नशा से दूर रहने वाले योगेश जी ने दर्जनों सम्मान प्राप्त करने के बावजूद किसान की वेषभूषा नहीं त्यागी। इंजोर में एक कवि ने उनका काव्य चित्र खींचा था-सांवर रंग झोलंगा कुरता, सिर पर छोटगर टीक। फरसा अइसन मोछ टेंढ़ हे, बोले मेंं निर्भीक॥ उनका यही रूप उन्हें सर्वश्रेष्ठï जनकवि बनाता है।- पंडित सत्यनारायण चतुर्वेदी।
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