Tuesday, October 18, 2011

मगही ‌दिवस पर जारी होगा क‌‌वि का कैलेंडर



कागज के समंदर में कलम की नाव लेकर के। निकला हूं शहर की भीड़ में मैं गांव लेकर के।।

इन पंक्तियों को जीनेवाले बिहार के प्रतिष्ठित कव‌ि योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश की जयंती उनके गांव पटना जिले के नीरपुर में २३ अक्तूबर को मगही दिवस के रूप में जोरदार तरीके से मनाने की तैयारी है। विभिन्न वादों के दौर में अपनी जड़ों से जुड़े रहनेवाले इस जनकवि को स्मरण, नमन करते रहने के लिए कैलेंडर का सहारा लिया जा रहा है। मगही दिवस पर उनके नाम पर एक पुस्तकालय और लोकभाषा संरक्षण केंद्र का शिलान्यास होगा, साथ ही उनकी तसवीर और जीवन चरित का एक कैलेंडर भी जारी किया जाएगा। यह संभवतः पहली बार होगा जब किसी आधुनिक लोकभाषा कव‌ि का कैलेंडर जारी होगा। मगही के प्रथम महाकाव्य गौतम के रचयिता को सैंकड़ों घरों तक पहुंचाने के इस प्रयास को साहित्यकार काफी सकारात्मक रूप में देख रहे हैं।

मगही आंदोलन को बल देने के लिए इस कार्यक्रम में बिहार सरकार के प्रभावशाली स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे, सहकारिता मंत्री रामाधार सिंह और मगही अकादमी के अध्यक्ष उदयशंकर शर्मा मौजूद रहेंगे। यह मंच सिर्फ मगही का नहीं होगा। इस पर पूर्वांचल के सांसद, विधायकों के साथ भोजपुरी सुपरस्टार मनोज तिवारी और भोजपुरी क्लासिकल सिंगर राकेश उपाध्याय भी मौजूद होंगे। क्योंक‌ि योगेश सिर्फ हिंदी और मगही के कवि नहीं थे, बल्कि सभी लोकभाषाओं के आंदोलनों में सहभागी थे। उनकी शुरूआत हिंदी से हुई थी और १९५२ में ‌आचार्य शिवपूजन सहाय की प्रेरणा से रहस्यवादी हिंदी कविताओं का संग्रह विभा सामने आई थी। पर जन और जमीन से जुड़ाव ने उन्हें १९५४-५५ से मगही की ओर मोड़ दिया। हिंदी में लगातार लेखन करते रहे पर बड़ी स्वीकार्यता उन्हें मगही के महाकवि के रूप में ही मिली थी। उनके करीबी साहित्यकारों का आरोप है कि बिहार के खेमेवादी हिंदी कवि जानबूझकर उन्हें मगही कवि घोषित करते थे।