Wednesday, April 9, 2008

की हम्मर मोछ निहार ह?

यह कविता मगही की सबसे लोकप्रिय कविताआें में से एक है। १९६७ से अभी तक एक हजार से अधिक मंचों पर यह कविता पढ़ी जा चुकी है पर इसकी मांग आज भी उतनी ही है। आम लोगों में आशुकवि डा. योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश की पहचान मगही के प्रथम महाकाव्य ..गौतम.. की रचना के लिए उतनी नहीं है जितनी इस कविता के लिए है।

की हम्मर मोछ निहार ह?
मोछ पर सान हल भारत के
हल मोछ सहारा आरत के
जहिना से मोछ कटा गेलो
ई लच्छन भेलो गारत के
जब मोछ हलो तब जय भेलो
अब मोछ कटल तब हार ह।।की हम्मर..

ई मोछ मरद केचिन्हा हे
दुस्मन खातिर छरबिन्हा हे
मोछे कटवा के राजपूत
अब सिंह से बनलन सिन्हा हे
जब मोछे नय तब झूठ मूठ
की उलटे सान बघार ह।। की हम्मर..

पमही से रेख उठानी हे
मोछे से सरस जुआनी हे
बिनु मोछ निपनिया कहलइब
मोछेसे मुंह के पानी हे
तूं मोछ कटा मेहरी बनल
अब बैठल मच्छी मार ह।। की हम्मर...

हल मोछ भीम अउ अरजुन के
कांपल दुस्मन बोली सुन के
पृथ्वीराज के मोछ देख
भागल गोरी अंखिया मुन के
हे सगरो झगड़ा मोछे के
तूं बिना मोछ ललकार ह।। की हम्मर..

ऊ वीर शिवाजी, राना के
ऊ वीर कुंवर मरदाना के
मोछे से दुस्मन मात भेल
तात्या टोपे अउ नाना के
तूं मोछ कटा फिल्मी दुनियां
में जाके दांत चियाड़ ह।। की हम्मर..

हल वीर भगत के मोछे पर
आजादी के मतवालापन
वीरे रस के कविता कइलन
मोछेवाला ऊ कवि भूषण
तूं मोछ कटा के मउगी भिर
चुपके से लत्ती झार ह।। की हम्मर...

मोछे तो भेद बताव हे
ई मरद अउर मेहरारू के
बाहर के धूरी गरदा ल
ई काम कर% हे झारू के
फरसाकट की फ्रेंचकट के भी
तू नय भार सम्हार ह।। की हम्मर...

(रचना काल : २५ दिसंबर १९६७)

4 comments:

नारायण प्रसाद said...

साधारणतः दो या दो से अधिक अक्षरवाले अकारान्त हिन्दी शब्दों के अन्तिम अन्तर्निहित अकार का उच्चारण नहीं होता । जैसे - "घर" (उच्चारित "घर्"), "चल" (उच्चारित "चल्") । परन्तु मगही में ऐसा नहीं होता । मगही में जब अन्तिम अकार का उच्चारण होता है तो इसे बिकारी (या भिखारी) चिह्न (अवग्रह चिह्न) से सूचित किया जाता है ।
उदाहरण -
चल (उच्चारण "चल्") - इसका प्रयोग उम्र में छोटे लोगों के लिए या निरादरार्थ होता है ।
चलऽ (उच्चारण "चल") - आदरार्थ प्रयोग । जैसे पिताजी को हमेशा "चलऽ" ही कह सकते हैं, "चल" का प्रोग गाली के समान माना जायेगा ।

अतः इस कविता में निम्नलिखित संशोधन की आवश्यकता है -
> की हम्मर मोछ निहार ह?
की हम्मर मोछ निहारऽ ह ?

>अब मोछ कटल तब हार ह ।।
अब मोछ कटल तब हारऽ ह ।।

.... इसी तरह अन्य जगहों पर ।

---नारायण प्रसाद

मृत्युंजय कुमार said...

नारायण जी धन्यवाद।
मैंने लिखते समय इनका ध्यान रखा था पर इसे रूपांतर के जरिए यूनिकोड में परिवर्तित किया तो यह मात्रा बदल गई और यह अशुदि्ध रह गई। तकनीकी तौर पर कमजोर होने के कारण मुझे यह नहीं पता कि ब्लाग पर आपके द्वारा इंगित मात्रा कैसे लाई जाए। मुझे उम्मीद है कि आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा।

नारायण प्रसाद said...

मृत्युंजय कुमार जी,
आप सीधे यूनिकोड देवनागरी में ही क्यों नहीं टाइप करते ? यदि आप चाहें तो यूनिकोड देवनागरी सम्पादित्र (editor) आपको भेज सकता हूँ । इसके लिए कृपया व्यक्तिगत सन्देश भेजें ।
शुभ कामनाओं सहित
नारायण प्रसाद

McWell said...

भाई, ई कविता सचमुच हमर दिल छू लेलक. का बात. हम मरदा के सान हे ई कविता में. लेकिन ई कविता बाप के सत्ता के पछ के बात कर हे. हम औरत के आजादी के पछधर ही. बस एतना ही.
............मुन्नी चौधरी