Monday, September 7, 2009

आंसू दे गया मगही के अंतिम सूर्य का अस्त होना



- प्रोफेसर साधु शरण सिंह सुमन(बिहार के वरिष्ठ साहित्यकार एवं भोजपुरी कवि, अणुव्रत आंदोलन से भी जुड़े। मोबाइल नंबर ०९३३४१३३७०८ पर संपर्क किया जा सकता है।)
दरअसल जन-जन के लोकप्रिय लोक कवि डा.योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश ने हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत का विद्वान होने के बावजूद लोकभाषा मगही को साहित्य सेवा का जरिया बनाया। यही अपने आप में लोक के प्रति उनकी सेवा भावना को दर्शाता है। कवि, साहित्यकार और मानस विशेषज्ञ योगेश जी ने शिक्षा अधिकारी के पद से सेवा निवृत्ति के बाद खुद को लोक साहित्य और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। दो दर्जन से अधिक पुस्तकों की रचना और कई पत्रिकाओं का संपादन कर उन्होंने साबित किया कि वह अप्रतिम प्रतिभा के धनी थे। मगही में जहां उन्होंने महाकाव्य गौतम की रचना की, वहीं मगही रामायण और गीता भी लिख डाली। योगेश लोकभाषा मगही के आखिरी सूर्य थे। इससे पहले मगही के तीन सूर्य लखीसराय के डा. श्रीनंदन शा ी, बड़हिया के मथुरा प्रसाद नवीन और नालंदा के जयराम सिंह जयराम गुजर चुके थे। ऐसे में योगेश जी के रूप में आखिरी सूर्य के अस्त होने की सूचना आंसू दे गया।बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के आजीवन सदस्य और पटना जिला हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष योगेश जी मगही भाषा को बिहार लोक सेवा आयोग की प्रतियोगिता परीक्षाओंं में शामिल कराने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे। इस उद्देश्य से उन्होंने कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व किया और राज्य सरकार से लगातार इसकी मांग करते रहे। योगेश जी ने मगही के उत्थान के लिए संपूर्ण मगध क्षेत्र में आधे दर्जन से अधिक संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर नि:स्वार्थ और स्वांत: सुखाय भाव से मगही का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने अपने आखिरी समय तक युवा कवियों का मार्गदर्शन किया। योगेश जी के निधन पर बाढ़ के साहित्यप्रेमियों की ओर से शोक सभा का आयोजन हुआ। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अत्यंत आनन-फानन में आयोजित इस शोकसभा में सैकड़ों लोग उमड़ पड़े। सभा में फैसला लिया गया कि डा.योगेश जी के नाम पर हर वर्ष एक लोक साहित्यकार को योगेश स्मृति सम्मान प्रदान किया जाएगा। इसके अलावा मगही के युवा रचनाकार योगेश जी के जाने से खुद को अकेला न समझें, इसी सोच के साथ डा.योगेश स्मृति संस्थान स्थापित करने का फैसला लिया गया। इस संस्था की ओर से नवोदित लोक कवियों, रचनाकारों की मदद की जाएगी।न केवल साहित्यकारों, बल्कि समाज के निचले तबके के लोगों की मदद के लिए भी योगेश जी हमेशा तैयार रहते थे। बाढ़ में ही एक बार साक्षरता अभियान के एक कार्यक्रम में मैं और योगेश जी साथ पहुंचे थे। वहां बच्चों को बड़ी संख्या में कलम और पेंसिलें बांटी जा रही थीं। योगेश जी ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें एक सौ कलमें दिलवा दूं। मुझे उनकी इस मांग पर बड़ा आश्चर्य हुआ, फिर भी मैंने आयोजकों से कह कर योगेश जी को सौ कलमें दिलवा दी। अगले ही दिन मुझे यह जानकर और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि योगेश जी सुबह सवेरे उठकर पास की दलित बस्ती में गए और बच्चों को कलमें बांट कर पढऩे के लिए प्रेरित किया।मानस मर्मग्य योगेश जी रामचरित मानस के एक अच्छे प्रवचनकर्ता भी थे। इसके लिए मध्य प्रदेश में उन्हें मानस हंस का सम्मान दिया गया था। उनके मन में सभी धर्मों के लिए आदर का भाव था। करीब चार साल पहले का एक वाकया याद आता है। मैं योगेश जी के साथ राजस्थान के पाली जिले में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए आयोजित एक साहित्यिक सम्मेलन में पहुंचा था। हिंदी और उर्दू के कवि अपनी डफली आपना राग अलाप रहे थे। बारी जब डा.योगेश की आई तो उन्होंने अत्यंत सरल भाषा में समझाया कि जो 'ऊंÓ है, वही इश्वर है, वही अल्लाह है। सभी का मूल भाव एक है। उनकी लोकप्रिय शैली से गदगद हुए वहां मौजूद प्रबुद्ध श्रोता पूछने लगे, यह कहां के कवि हैं? पता चला बिहार तो कइयों की टिप्पणी थी, ऐसी विभूति बिहार ही पैदा कर सकता है।सादगी के प्रतिमूर्ति योगेश जी बड़ी-बड़ी और कड़ी-कड़ी मूंछें रखते थे। उनकी 'मूंछ महातमÓ कविता इतनी लोकप्रिय है कि जो एक बार सुन लेता था उसके मानस में योगेश जी मूंछ वाले कवि के रूप में बस जाते थे। वह कई बार मेरे घर आ चुके थे। एक दिन उन्होंने मेरी पत्नी से कहा, सुमन जी से भी कहो कि मूंछ रखे। इसके साथ ही उन्होंने वह कविता मेरी पत्नी को भी सुना दी-तू बात मूंछ के नय पूछ, एकरा में बड़ा बखेरा हे।जे हमरा दन्ने ताक हे, समझे बड़ा लखेरा हे॥मूंछ मरद के चिन्हा हे, दुस्मन खातिर छरबिन्हा हे।मूंछ रहल त भारत जीतल, मूंछ कटल तब हारऽ ह।कि हम्मर मूंछ निहारऽ हअ।
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मगध की मिट्टी में जन्मे मानस मर्मग्य डा.योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश ने मगध को महिमा मंडित किया। मगही भाषा को अग्रणी लोकभाषा बनाने के लिए योगेश जी द्वारा चलाए गए अभियान को मगध क्षेत्र कभी भुला नहीं सकता। ७८ साल की आयु में भी वे साहित्य सेवा के लिए मूंछ पर ताव देकर खड़े रहते थे। गंगा की पावन धरती पर जन्मे योगेश जी में जहां सादगी कूट-कूट कर भरी हुई थी, वहीं साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं को सहयोग देने के लिए वह दिन-रात उपलब्ध रहते थे। क्षेत्र के दर्जनों युवा कवियों और रचनाकारों के योगेश जी प्रेरणा ोत हैं और बने रहेंगे। समाजसेवी योगेश जी साक्षरता अभियान, नशा मुक्ति अभियान जैसे कार्यक्रमों से भी जुड़े रहे। खुद नशा से दूर रहने वाले योगेश जी ने दर्जनों सम्मान प्राप्त करने के बावजूद किसान की वेषभूषा नहीं त्यागी। इंजोर में एक कवि ने उनका काव्य चित्र खींचा था-सांवर रंग झोलंगा कुरता, सिर पर छोटगर टीक। फरसा अइसन मोछ टेंढ़ हे, बोले मेंं निर्भीक॥ उनका यही रूप उन्हें सर्वश्रेष्ठï जनकवि बनाता है।- पंडित सत्यनारायण चतुर्वेदी।

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